बिन पानी सब सूना ?
प्रति वर्ष 22 मार्च को वर्ल्ड वाटर डे मनाया जाता है। वर्ल्ड वाटर डे मनाने का उद्येश्य दुनिया में रहने वाली सभी लोगों को जल की कीमत, उसका महत्व बताना और जल संरक्षण के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है| जल जो जीवन का महत्वपूर्ण घटक है, आज इसके संरक्षण के लिये विचार करना बेहद जरूरी है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व में करीब 900 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है और जो पानी मिल रहा है वह विषाणुओं, औद्योगिक अपशिष्ट एवं हानिकारक रसायनों से युक्त है। जिससे जानलेवा जलजनित बीमारियां फैल रही है। जलजनित रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
बात भारत की करें तो प्रतिवर्ष लगभग चार करोड़ भारतीय जलजनित बीमारियों के चपेट में आ जाते हैं। भारत में हर रोज लगभग 1600 व्यक्ति हैजा से मरते हैं। हजारों किसानों ने गत वर्ष भी सिंचाई के जल के अभाव में आत्महत्या की है। कावेरी जल विवाद जैसे कई जल-विवाद लोगों के सामने मुंह बाये खड़ी है। पानी का अभाव लोगों को युद्धोन्मादी बना देता है क्योंकि सवाल, अस्तित्व का हो चलता है। इसलिए करीब दो दशक पहले से यह भविष्यवाणियाँ की जाने लगी है कि तीसरा विश्व- युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कि खाड़ी के देशों में तेल पर कब्जा करने के लिए होता है।
हड़प्पा, मोहन जोदड़ों से लेकर मेसोपेटोमिया जैसी सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही पली, बढ़ी एवं विकसित हुई और जहाँ से नदी विलुप्त हुई वहाँ के बासिंदे भी स्थानांतरित होकर कहीं और चले गए। सरस्वती नदी के किनारे बसी सिंधु घाटी सभ्यता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी सभी के जीवन में पानी का रहना अति आवश्यक है और भक्ति काल के दौरान यह आवश्यकता और पुष्ट हुई। इसी समय मनुष्य के जीवन में पानी के महत्व को दर्शाते हुए रहीम ने अपने दोहे में कहा-रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून मतलब साफ था कि बिना पानी जीवित नहीं रहा जा सकता।
22 मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस घोषित
मनुष्य के शरीर का 65 प्रतिशत हिस्सा पानी है। उसे अमूनन 3-5 लीटर प्रतिदिन पीने की पानी की जरूरत होती है, लेकिन जिस तेजी से पृथ्वी पर आबादी बढ़ी, औद्योगिकरण बढ़ा, जंगल कम हुए, पानी के श्रोतों का अत्यधिक दोहन हुआ,उसका हानिकारक प्रभाव पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय असंतुलन एवं पानी के सूखते स्रोतों के रूप में पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र को इसका अंदेशा काफी पहले से हो गया था। इसलिए आज से 25 वर्ष पहले 1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव पास कर पूरे विश्व बिरादरी को जल संरक्षण के प्रति सचेत करने के लिए 22 मार्च के दिन को विश्व जल संरक्षण दिवस घोषित कर दिया। तब से लेकर आज तक पूरे विश्व भर में इस दिन को विश्व जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस बात की चिंता की जाती है कि उपलब्ध पीने के पानी के स्रोतों को कैसे संरक्षित किया जाए।
अब सवाल उठता है कि जल संरक्षण करना क्यूं आवश्यक है ? गर्मी आने के साथ ही भारत के अधिकतर राज्यों में पीने के पानी के लिए जद्दोजेहद, मारा-मारी,नारे-बाजी, प्रदर्शन सब दिख जाता है। इसके पीछे का कारण है-समाज के एक बड़े तबके को पानी के महत्व को न समझना या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करना और पानी का दुरूपयोग करना। पानी के दुरूपयोग में बुद्धिजीवी से लेकर अनपढ़ तक समाज के सभी वर्गों की थोड़ी बहुत हिस्सेदारी है। पानी के स्रोतों को संकट में डालने में औद्योगिक ईकाइयों द्वारा भू- जल से लेकर पानी के अन्य स्रोतों का अंधाधुंध इस्तेमाल, फैक्ट्रयों के दूषित जल को पानी के स्रोतों में सीधे छोड़ना आदि शामिल है। ऐसा दुरूपयोग पूरे विश्व भर में दिख जाएगा। जिसका खामियाजा आम लोग, गरीब, महिलाओं, आदिवासियों आदि को उठाना पड़ता है।
पानी के बेहिसाब खर्च पर लगाम जरूरी
पानी का संकट हथियार से नहीं, सहयोग का हाथ बढ़ाने से सुलझेगा। इसके लिए जुगत बिठानी पड़ेगी। पानी के बेहिसाब खर्च पर लगाम लगानी पड़ेगी, हमें लोगों को समझाना पड़ेगा कि पानी के स्रोतों को आनेवाली पीढ़ी के लिए बचाना सब की जिम्मेदारी है। इसके लिए हमे नदियों को जोड़ने वाली मुहिम से लेकर भूजल का स्तर बढ़ाने के लिए तामिलनाडु सरकार द्वारा वर्षा जल को संचयन हेतु वाटर हार्वेस्टिंग सिद्धांत को अपनाना पड़ेगा। राजस्थान से पानी संरक्षण के गुर सीखने, पूर्वजों द्वारा दिए गए मंत्रों पर अमल करने के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धति से पानी सहेजने की जरूरत है। पानी का संपूर्ण संरक्षण करना किसी भी सरकार के अकेले बूते की बात नहीं है इसके लिए पूरे समाज को साथ आना होगा। क्योंकि जल है तो कल है, वरना वो दिन भी दूर नहीं की पूरे पृथ्वी पर से डायनासोर की तरह मानव का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।
वेद-पुराणों में भी है जल संचय का महत्व
जल का महत्व, जल संचय और जल उपयोग के बारे में हमारा गौरवमयी इतिहास रहा है, तो हमारे वेद-पुराणों में भी जल संचय का महत्व बखूबी बताया गया है। धर्मात्मा युधिष्ठिर के इस कथन में यह सीख स्वतः निहित है कि बहती नदी मिले या पानी का सागर, उसमें से प्यास भर पानी लो, पर उस पर अपना अधिकार न जताओ। कितना बड़ा सूत्रवाक्य है जल संचय और प्रकृति के संरक्षण का, किन्तु इसे तथाकथित अंधाधुंध विकास के वाहक समझेंगे, इस बात में बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है! अपने इतिहास को हम खंगालें तो दिखता है कि 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग' शब्द बेशक आज ईजाद हुआ है, लेकिन महात्मा विदुर ने अपने इस कथन में वर्षा जल संचयन का महत्त्व कितना पहले बताया था - 'यदि वर्षा हो और धरती उसके मोती समेटने के लिये अपना आंचल न फैलाये, तो वर्षा का महत्व नहीं।'
इस उपलब्ध ज्ञान के बावजूद यदि हम भारतीय, जल संचय की जगह अर्थ संचय को अपनी प्राथमिकता बना रहे हैं, तो हमें अपने आप को आधुनिक और ज्ञानी नहीं बल्कि मूर्खा की श्रेणी में ही रखना चाहिए। मुझे ये कहने में जरा भी संकोच नहीं हो रहा कि हम भारतीय पानी के प्रति अज्ञानी अथवा जानबूझकर किए जा रहे कुप्रबंधन का शिकार है, हालाँकि जल पुरुष राजेंद्र सिंह जैसे कुछ एक प्रयास अवश्य ही सही दिशा में अग्रसर हैं। हालाँकि, ऐसे प्रयास जल माफियाओं की आँखों की किरकिरी बने हुए हैं तो अवैध कब्जे वाले लोग भी अपने निहित स्वार्थों की खातिर जल-संकट को बढ़ा ही रहे हैं! उम्मीद की जानी चाहिए कि इस गर्मी की शुरुआत में ही इन समस्याओं पर समाज और सरकार दोनों के ही स्तर पर चिंतन-मनन किया जायेगा और जल-संकट से मुक्ति का व्यवहारिक मार्ग भी प्रशस्त किया जायेगा। शायद तब ही हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः' के मन्त्र का खुलकर जाप कर सकते हैं, अन्यथा इस मन्त्र का प्रभाव क्षीण हो जायेगा, इस बात में दो राय नहीं!