ईसा पूर्व से ही प्रचलित है होली
प्रेम और सौहार्द का पर्व ‘‘होली एक प्रमुख भारतीय पर्व है। यह लगभग सारे भारत में मनाया जाता है। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इस पर्व को उत्साह से मनाते हैं। होली के पर्व का प्रभाव वसंत पंचमी से शुरू होकर पूर्णिमा के दिन तक चलता है। हास-परिहास, व्यंग-विनोद, मौज-मस्ती और मेल-मिलाप का पावन पर्व होली एक पौराणिक पर्व है।
इस पर्व का उल्लेख भविष्यपुराण, भविष्योत्तरपुराण, वराहपुराण इत्यादि प्राचीन ग्रंथों में हुआ है। इन ग्रंथों से ऐसा आभास होता है कि ईसा की कई शताब्दी पहले से ही यह पर्व प्रचलित रहा है। इस पर्व को मनाने के पीछे अनेक मत प्रचलित है। जिनमें हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और उसके पुत्र प्रह्लाद से संबंधित कहानी सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
अपने पुत्र ईश्वर भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाने को कहा, क्योंकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी। लेकिन ईश्वर की माया के सामने किसकी चली है? होलिका ही जल गयी और प्रह्लाद बच गया। तभी से होली मनाने की प्रथा चल पड़ी।
भारत में सबसे प्रसिद्ध होली ब्रज की मानी जाती है क्यांकि कृष्ण के जीवन के साथ इसका संबंध रहा है। यह भी मान्यता है कि महर्षि मनु का जन्म भी होली के दिन ही हुआ था। होली के दिन लोग अपने ऊपर लगी पाबंदियों को भूल जाना चाहते हैं और खुलकर आजादी की सांस लेना चाहते हैं।’’ यह एक ऐसा पर्व है जो सबको रंग में सराबोर कर एक-दूसरे के प्रति पलने वाले मैल को धोकर प्रेम से रहने का संदेश देता है। यह उदासी को दूर कर खुशियों को सहेजने का पर्व है।