कानूनी हक है गुजारा भत्ता

बदलते वक्त के साथ रिश्तों  में भी बदलाव तेजी से नजर आने लगा है। यहाँ बात शादी के रिश्ते की हो रही है, जो इन दिनों कभी आजादी के नाम पर तो कभी अपनी ज़िन्दगी जीने के नाम पर दाँव पर लग रहे हैं। इस दौड़ में कभी शादी के कुछ दिन बाद तो कुछ सालों बाद अपनी-अपनी राहें जुदा करना चाहते हैं। यह बात तब भी सामने आती है जब उनके बच्चों की जिन्दगी संवारने का महत्वपूर्ण समय होता है, मगर अनचाहे बंधन से टूटने की चाहत में इस बात को वे नजरअंदाज कर देते हैं। कुछ मामलों में तो अलगाव में दोनों की रजामंदी होती है, मगर अक्सर इसमें महिला अपने व बच्चों के भविष्य के लिये अधिक आशंकित होती हैं। यहाँ उन महिलाओं का जिक्र किया जा रहा है जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती हैं और गाहे- बगाहे कभी पति तो कभी ससुराल वालों के जुल्म की शिकार होती हैं।


ऐसे में शादी के बाद ससुराल में प्रताड़ित होने के बाद महिलाओं के मन में हमेशा असमंजस रहता है कि अगर प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाई तो कहीं शादी न टूट जाए। महिलाएँ दोराहे पर पहुँच जाती हैं। जहाँ से उनके लिये सही राह का चयन आसान नहीं होता। महिलाओं के मन में कई सवालों का जन्म अनायास हो जाता है, जैसे विवाद बढ़ने पर कहाँ रहेगी? क्या दोबारा जीवन शुरु कर पाएगी? बच्चों का क्या होगा? कानूनी लड़ाई कैसे लड़ेगी एवं उसका खर्चा कैसे चलेगा? सामान्य तौर पर गुजारा भत्ता उसके पति की हैसियत से तय होता है। एक शादीशुदा महिला सीआरपीसी, मैरेज एक्ट, हिंदू अडॉप्शन एवं मेंटेनेंस एक्ट घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है। पति-पत्नी के बीच तलाक के केस की स्थिति में पत्नी हिंदू मैरेज एक्ट की धारा-24 के अन्तर्गत गुजारा भत्ता मांग सकती है। महिला को कानून की तरफ से यह सुविधा है कि उसका भरण-पोषण उसके पति की हैसियत के हिसाब से हो। अगर पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो तलाक के वक्त मुआवजे की रकम पति की जमा की हुई पूँजी( प्रॉपर्टी) एवं सैलरी के आधार पर तय होती है।


बौद्ध धर्म, सिक्ख और जैन धर्म से संबंधित महिलाएँ हिंदू मैरेज एक्ट, हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट1956, डीवी एक्ट और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है।


माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में अपने एक फैसले के तहत लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के लिये गुजारा भत्ता मांगने के लिये सशर्त रास्ता सुझाया है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अगर युवक-युवती समाज के सामने एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में पेश करे तो ऐसी स्थिति में युवती को गुजारा भत्ता मिल सकता है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने युवतियों के साथ-साथ बच्चों के गुजारा भत्ता संबंधी अधिकार के बारे में बताते हुए यह कहा है कि लम्बे समय से लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए उत्पन्न बच्चे नाजायज नहीं कहे जा सकते। संतान चाहे शादीशुदा पति- पत्नी से हों, या लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे युवक-युवतियों से। तमाम बच्चों के इस तरह से गुजारा भत्ते लेने का अधिकार है।


हिंदू मैरेज एक्ट की धारा 24 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति या पत्नी में कोई भी एकमुश्त गुजारा भत्ता ले सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। महिलाएँ केस कहाँ दर्ज कराएँ? यह भी एक परमावश्यक सवाल है। आमतौर पर अदालत का ज्यूरिस्डिक्सन वहाँ तय होता है, जहाँ घटना होती है, खासकर ऐसा क्रिमिनल केस में होता है। महिला जहाँ रहती है, उस इलाके में और जहाँ आखिरी बार रही, वहाँ की अदालत में अर्जी दाखिल कर सकती है, या फिर जहाँ उसका पति रहता है, वहाँ भी अर्जी दाखिल की जा सकती हैआज के परिवेश में जहाँ संयुक्त परिवार विलुप्त है- वहाँ एकल परिवार भी टूटता जा रहा है, एवं बच्चे अनैतिक होते जा रहे हैं। क्या आज फिर शादी एक महा उत्सव नहीं हो सकता? यह एक महज हास्यास्पद सवाल समाज के कपाल पर टीका बनकर रह गया है। जिसकी आयु 60 वर्ष या फिर उससे अधिक है, अगर इस आयु का कोई व्यक्ति स्वयं अपनी देखभाल नहीं कर सकता तो वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने बच्चों से गुजारे भत्ते की मांग कर सकता है। गुजारे भत्ते में भोजन, कपड़े, रिहाईश, मेडिकल सयोग एवं उपचार शामिल हैंदरअसल कानून का अपना महत्व है, लेकिन अकेले कानून से ही सब कुछ नहीं किया जा सकता हैजब तक समाज में परिवर्तन नहीं आएगा, तब तक महिला एवं बुजुर्गों की स्थिति में सुधार लाना मुश्कल ही होगा।


लेखक दिल्ली न्ययालय में अधिवक्ता है।


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