हिंदी साहित्य में छायावादी युग के स्तंभ रहे सुमित्रानंदन पंत
उत्तराखंड स्थित बागेश्वर उन दिनों अल्मोड़ा के नाम से जाना जाता था, जब 20 मई 1900 को सुमित्रानदंन पंत का जन्म हुआ। जन्म के छः घंटे बाद इनकी माँ का प्राणांत हो गया। जिसके बाद इनका लालन-पालन दादी किया। ये गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे। इनका नाम गोसाई दत्त रखा गया। वर्ष 1990 में ये शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गए। यहां इन्होंने अपना नाम गासाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा। 1918 में मंझले भाई के साथ काशी गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहां से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद गए। वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिंदी, सस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा साहित्य का अध्ययन किया।
20 मई को महान कवि सुमित्रा नंदन पंत के जन्म दिवस पर गैर सरकारी संस्था दर्शन मेला म्यूजियम डेवलपमेंट सोसायटी की प्रमुख उपलब्धि 'पाठक मंच' के साप्ताहिक कार्यक्रम 'इन्द्रधनुष' की 666वीं कड़ी में बताया गया कि ”सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और राम कुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत की काव्यचेतना का विकास इलाहाबाद में हुआ। इन्होंने 1938 में प्रगतिशील मासिक पत्रिका 'रूपाभ' का संपादन किया। 1958 में 'युगवाणी' से 'वाणी' काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन 'चिदम्बरा' प्रकाशित हुआ। जिसपर 1968 में इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। 1960 में 'कला और बुढ़ा चाँद' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ। 1961 में 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित हुए। इसी तरह 1964 में विशाल महाकाव्य 'लोकायतन' का प्रकाशन हुआ। कालांतर में उनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। 1950 से 1973 तक आकाशवाणी में पदामर्शदाता रहे। अविवाहित पंत जी के लेखनी में नारी और प्रकृति के प्रति सौदर्यप्रेरक भावना रही। 29 दिसंबर 1977 को इनका प्राणांत हो गया।”