प्रसारण की आवाज के साथ जिंदा हैं बीरेंद्र कृष्ण भद्र


बीरेंद्र कृष्ण भद्र और महालया दोनों के बीच करीब छह दशक से अधिक का सक्रिय संबंध रहा है। 1931 में जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो के कोलकाता केंद्र ने महालया के दिन अपने प्रातःकालीन कार्यक्रम में बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज में चंडीपाठ का प्रसारण किया, तब से रेडियो पर चंडीपाठ का प्रसारण एक स्थाई वार्षिक कार्यक्रम बन गया। आगे चलकर तो महालया के दिन का 'महिषासुरमर्दिनी' नामक यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम में बदल गया।


इस सिलसिले को 3 नवंबर 1993 को तब भारी झटका लगा, जब 4 अगस्त 1905 को जन्मे आवाज के जादूगर श्री भद्र ने 86 वर्ष की आयु में न केवल रेडियो, बल्कि पूरी दुनिया का ही साथ छोड़ दिया।


अब केवल उनकी यादें शेष रह गई हैं। विज्ञान व तकनीक की मदद से हम उनके चले जाने के बावजूद, उनकी आवाज को अपने कब्जे में रखने में कामयाब हैं। इस प्रकार बीरेंद्र कृष्ण भद्र प्रसारण की आवाज के साथ जिंदा हैं।


बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज में जब 1983 मे पहली बार 'महिषासुरमर्दिनी' को कैसेटबद्ध किया गया, तब पंकज कुमार मल्लिक ने इसे संगीत दिया था। महालया पर होने वाले चंडीपाठ के रेडियो प्रसारण से वास्ता रखने वाला हर नागरिक यह मानता है कि भद्र की मौत के साथ देश ने एक महान कलाकार को खोया था।


उनकी जगह अब भी खाली है। महालया के दिन तो बस उनकी आवाज से ही लोग उनका दर्शन भी पाने की कोशिश करते हैं। बीरेंद्र कृष्ण भद्र पर साक्षात दैवी कृपा थी, इसे आज भी लोग मानते हैं।


कब मनाते है महालया


 महालया बंगालियों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे दुर्गा पूजा की शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है। महालया को दुर्गा पूजा के सात दिन पहले मनाते है। देश के अधिकांश हिस्से में पितृपक्ष के आखिरी दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन मां दुर्गा को धरती पर महिषासुर से रक्षा करने के उद्देश्य से बुलाते हैं।


आश्विन माह की अमावस्या को श्रद्धालु मां दुर्गा की पूजा करके उनका आह्वान करते हैं।  इसके बाद जब दुर्गा का आगमन हो जाता है तब बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है।


यह देवी पक्ष की शुरुआत और पितृ पक्ष के अंत का प्रतीक है।  बंगालियों के लिए एक शुभ दिन है, जो इसे बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। महालया में कई लोग अपने पूर्वजों की विशेष पूजा करते हैं, उनकी आत्माओं की शांति के लिए कामना करते हैं।


महिषासुर मर्दिनी श्री चांडी के पाठ साथ में देवी दुर्गा की कहानी के साथ-साथ राक्षस राजा महिषासुर की हत्या और मा दुर्गा के लिए सुंदर भक्ति गीत का एक मिश्रण है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नव दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप हैं और नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक रूप की पूजा होती  है। महिषासुर मर्दिनी की कहानी के बिना, योद्धा दुर्गा का स्वागत अपूर्ण है। इस कहानी में बताया गया है कि कैसे मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर को पराजित किया।


 


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