पुत्र
आधी रात का समय था। सुरेश की नींद माँ की तेज रोने की आवज़ सुन कर खुल गई। सुरेश ने दीवार पर टंगी घड़ी पर नज़र डाली, सुबह के चार बज रहे थे। सुरेश आँखो को मलते हुऐ उठा और माँ के कमरे मे गया। सुरेश को देखते ही माँ और जोर से रोने लगी और कहने लगी, "देख सुरेश तेरे पिताजी को क्या हो गया है ... सारा बदन ठंडा पड़ गया है।"
सुरेश ने अपने पिता के माथे पर हाथ रख, माथा ठंडा था। उसने नाक पर उँगली रखी .... साँस भी नही थी। सुरेश समझ गया कि उसके पिता कि मौत हो चुकी है।उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे ... उसने माँ की तरफ़ देखा, माँ अभी भी रो रही थी उसे भी पता था कि उसका पति मर चुका है। उसने माँ से पूछा, "अम्मा, रमेश को फोन करूँ ?"
रमेश, सुरेश का बड़ा भाई था, माँ ने मना किया, "नही , इस समय नही, बाद मे करना.... परेशान हो जाएगा।"
"रमेश की चिंता है, मेरी भी तो नींद खराब हुई है ... कमाऊ बेटा है न ... पर कौन सा यहाँ खर्चा दे रहा है? जो कर रहा है अपने घर के लिये कर रहा है।" सुरेश ने सोचा।
शोर सुनकर आस पड़ोस के कुछ लोग भी आ गए। उन लोगो ने मिल कर लाश को नीचे लिटा दिया और एक सफेद चादर उसके ऊपर डाल दी। सभी सुरेश को बेचारे की तरह देख रहे थे जो उसे बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था। सात बज गए थे। सुरेश माँ के पास आया और धीरे से कान मे पूछा,"अब कर दूँ रमेश को फोन?"
"हाँ, कर दे।" माँ ने जवाब दिया।
सुरेश जैसे ही उठा, उसकी नज़र अपने पिता की लाश के हाथ पर पड़ी। वहाँ से चादर थोड़ी हटी हुई थी और उँगली पर सोने की अँगूठी चमक रही थी। यह देख उसकी आँखे भी चमक गई। अब सुरेश बैचेन हो गया। बार बार कमरे मे जाता पर हर बार कमरे मे कोई न कोई होता। सुरेश की परेशानी उसके माथे पर आई लकीरों पर साफ झलक रही थी। वह किसी भी तरह से रमेश के आने से पहले उस अँगूठी को हासिल कर लेना चाहता था। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि माँ सभी लोगो के साथ बाहर आई है और कुछ बाते कर रही है। सुरेश एकदम अन्दर गया। उसने अँगूठी उतारी और अपनी जेब मे रखी। अब वो अपने आप को काफी हल्का महसूस कर रहा था।
सुरेश कमरे से बाहर निकला और जोर से कहने लगा,"कमाल है , बड़े भाई की कोई जिम्मेदारी है या नही, आठ बजने को है .... अभी तक उसका कोई अता पता नही हद है लापरवाही की... अरे कोई रमेश को फोन करो .... मुझ से तो सीधे मुँह वात भी नही करता....
सुरेश बोलते बोलते बाहर निकल गया।