बहुत आगे निकल आए हम

शशांक शेखर, दसवीं कक्षा छात्र, डीएवी पब्लिक स्कूल, द्वारका, दिल्ली


बहुत आगे निकल आए हम सब,


अब जो चाहे वो मिल जाता है..


मन में सवाल उठने से पहले ही,


जवाब हाथों में मिल जाता है..


 इसी उलझन में एक दिन यूँ ही...


सुबह खिड़की से झांका तो,


नजरें सिमटकर रह गई..


आसमां को नापने की चाह,


ईमारतों से ढ़क गई..


इन ईमारतों ने इस विशाल गगन को,


यूँ ढंक लिया,


एक बादल तक न देख सका मैं..


इन्हीं ईमारतों में,


आसमां के अनगिनत तारे भी लुप्त हो जाते हैं


न जाने कैसे इन ईमारतों में


यह, विशाल आसमान छिप जाता है


बहुत आगे निकल आए हम सब..।।


Popular posts from this blog

पर्यावरण और स्वच्छता के लिहाज से ऐतिहासिक रहा आस्था का कुंभ 2019

मुखिया बनते ही आन्ति सामाड ने पंचायत में सरकारी योजनाओं के लिये लगाया शिविर

झारखंड हमेशा से वीरों और शहीदों की भूमि रही है- हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री झारखंड