बहुत आगे निकल आए हम
बहुत आगे निकल आए हम सब,
अब जो चाहे वो मिल जाता है..
मन में सवाल उठने से पहले ही,
जवाब हाथों में मिल जाता है..
इसी उलझन में एक दिन यूँ ही...
सुबह खिड़की से झांका तो,
नजरें सिमटकर रह गई..
आसमां को नापने की चाह,
ईमारतों से ढ़क गई..
इन ईमारतों ने इस विशाल गगन को,
यूँ ढंक लिया,
एक बादल तक न देख सका मैं..
इन्हीं ईमारतों में,
आसमां के अनगिनत तारे भी लुप्त हो जाते हैं
न जाने कैसे इन ईमारतों में
यह, विशाल आसमान छिप जाता है
बहुत आगे निकल आए हम सब..।।