बेईमानी सर्वत्र जयते
पैदा होते ही काका का नाम किसने और क्यूं रखा, यह आज तक पता नहीं चला। लेकिन सारा गांव काका ही कहकर बुलाने लगा। उनके माता-पिता तथा पत्नी तक काका ही कहते थे। काका भी अपना स्कूली नाम भूल चुके थे। दो चीज से घबराते थे। एक ठंड और दूसरा पानी।
__ इसलिये वे साल में एक दिन खिचड़ी (मकर संक्रांति) को स्नान करते थे। वे दशरथी स्टाईल से धोती पहनते थे। पीली धोती साल भर में नीचे सफ़ेद हो जाती थी, लेकिन कमर में लिपटी धोती पीली की पीली रह जाती। पर्व-त्योहार के अवसर पर उनकी पत्नी नहाने को कहती तो उनका जवाब होता- जा ! तू ही सरग (स्वर्ग) जइहउ, हमरा के नरके में छोड़ दिहउ। काका भांग के शौकीन थे। जब तरंग में आते तो मजमा लगा देते।
___ गांव के लड़कों से उनकी दोस्ती थी। लड़के भी उनकी बात सुनते थे। किसी दिन स्कूल जाते लड़कों को घेर लेते, और पूछते, कौन सी क्लास में पढ़ते हो?
लड़के कहते, जी, 12वीं क्लास में। क्या पढ़ते हो? जी, हिन्दी। काका पूछते हिन्दी में क्या?
लड़के कहते, कहानी। वे फिर पूछते किसकी? लड़के कहते, प्रेमचंद की।
अच्छा, बताओ प्रेमचंद की पहली कहानी कौन सी थी और कब छपी थी?
तुम्हारे मास्टर जी ने नहीं पढ़ाया? बच्चों ने कहा, नहीं। तो तुम्हारे मास्टर क्या पढ़े हैं?
जी, वे बी.ए बीटी हैं। तो वह बी.ए बैल हैं।
काका, आप क्या पढ़े हैं? बेवकूफ, नहीं जानता, हम एम ए बी एफ हैं।
काका, यह कौन सी डिग्री है? गदहे, यह भी नहीं जानता, मैट्रिक अपियर बट फ़ेल।
लड़के ठहाका लगाते, साथ में काका भी ठहाका लगाते।
उसके बाद काका कहते, प्रेमचंद की पहली कहानी 'बड़े घर की बेटी' 1910 में छपी।
___ एक लड़के ने डरते हुए काका से कहा कि उनकी पांच कहानियों का संग्रह 'सोज़े वतन' छपी थी, जिसे सरकार ने जब्त कर लिया था।
तुम ठीक कह रहे हो। 'सोज़े वतन' प्रेमचंद के नाम से नहीं बल्कि धनपत राय के नाम से छपी थी। उसके बाद धनपत राय की साहित्यिक मौत हो गई और प्रेमचंद का जन्म हुआ।
प्रेमचंद की कौन सी कहानी पढ़ाई गयी है?
-जी, 'नमक का दारोगा' मास्टर जी ने क्या पढ़ाया?
मास्टर जी ने पढ़ाया कि इस कहानी से यह सबक मिलती है कि बेईमानी के खिलाफ हमेशा ईमानदारी की जीत होती है।
बेटा, प्रेमचंद को समझने के लिये थोड़ी अक्ल की जरूरत होती है, वो तुम्हारे मास्टर के पास नहीं है। कहानी के मूल स्वर के लिये कहानी के त की ओर चलते हैं।
लड़के चुपचाप सुन रहे थे। काका तरंग में बह रहे थे।
उन्होंने कहा - वंशीधर अपनी ईमानदारी के चलते मालदार सरकारी नौकरी गंवा चुके थे। वे लौटकर घर आ गये थे। उनके पिता से लेकर सारे रिश्तेदार हेय दृष्टि से देख रहे थे। जैसे वंशीधर ने ईमानदारी से काम करके बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। वंशीधर चुपचाप लोगों की बाते सुनते, बोलते नहीं, लेकिन अंदर से टूट चुके थे। ईमानदारी का दंश झेल रहे थे। इसी हालात में पं. अलोपोदीन आते हैं, और अपने यहां मैनेजरी की नौकरी का ऑफर देते हैं। वंशीधर चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं।
बच्चों कहानी यहीं समाप्त हो जाती मासा है। अगर कहानी आगे बढ़ती तो क्या होता? गौर करो।
पं. अलोपोदीन कौन थे?
लड़कों ने जवाब दिया, ब्लैक मार्केटियर।
पं. अलोपोदीन के यहा क्या करेंगे? कालाबाजारी से कमाये गये धन की ईमानदारी से रक्षा करेंगे। बच्चों ने कहा।
तो कहो, कहानी का मूल स्वर क्या है?
बेईमानी की सर्वत्र जीत होती है, लड़के बोले।
ईमानदारी सुनने में अच्छा लगता है, करने में नहीं। तुम्हीं लोग पढ़-लिखकर बड़े-बड़े फर्मों में काम करोगे। तुम अपनी सारी उर्जा और मेधा सेठों की गलत/सही कमाई बढ़ाने में लगाओगेउसकी सुरक्षा करोगे। ईमानदारी का राग अलापोगे तो सड़क पर रहोगे
अब भागो, स्कूल जाओ।