मशहूर गुजराती पटोला साड़ी को बढ़ावा देने के लिये खादी ग्रामोद्योग आयोग ने किया ऐतिहासिक पहल
गुजरात की ट्रेडमार्क साड़ी ‘पटोला’ अत्यंत महंगी मानी जाती है और केवल शाही एवं धनाढ्य परिवारों की महिलाएं ही इसे पहनती हैं। कारण यह है कि इसके कच्चे माल रेशम के धागे को कर्नाटक अथवा पश्चिम बंगाल से खरीदा जाता है, जहां सिल्क प्रोसेसिंग इकाइयां (यूनिट) अवस्थित हैं।
इसी वजह से फैब्रिक की लागत कई गुना बढ़ जाती है, लेकिन अब इस पटोला साड़ी की कीमत में कमी आ सकती है, क्योंकि हाल ही में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने गुजरात के सुरेन्द्रनगर में प्रथम सिल्क प्रोसेसिंग प्लांट का उद्घाटन किया, जिससे रेशम के धागे की उत्पादन लागत को काफी कम करने के साथ-साथ गुजराती पटोला साडि़यों के लिए स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता एवं बिक्री बढ़ाने में मदद मिलेगी।
यह संयंत्र एक खादी संस्थान द्वारा 75 लाख रुपये की लागत से स्थापित किया गया है, जिसमें केवीआईसी ने 60 लाख रुपये का योगदान किया है। इस यूनिट में 90 स्थानीय महिलाएं कार्यरत हैं, जिनमें से 70 महिलाएं मुस्लिम समुदाय की हैं।
इस बारे में केवीआईसी के अध्यक्ष वी.के.सक्सेना ने कहा कि कोकून को कर्नाटक एवं पश्चिम बंगाल से लाया जाएगा और रेशम के धागे की प्रोसेसिंग स्थानीय स्तर पर की जाएगी, जिससे उत्पादन लागत घट जाएगी और इसके साथ ही प्रसिद्ध गुजराती पटोला साडि़यों की बिक्री को काफी बढ़ावा मिलेगा।
सुरेन्द्रनगर जिला दरअसल गुजरात का एक पिछड़ा जिला है, जहां केवीआईसी ने सिल्क प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना के लिए 60 लाख रुपये का निवेश किया है। इसका मुख्य उद्देश्य निकटवर्ती क्षेत्र में पटोला साडि़यां तैयार करने वालों के लिए किफायती रेशम को आसानी से उपलब्ध कराते हुए पटोला साडि़यों की बिक्री को बढ़ावा देना और लोगों की आजीविका का मार्ग प्रशस्त करना है।
परम्परागत रूप से भारत के हर क्षेत्र में सिल्क की साडि़यों की अनूठी बुनाई होती है। गौरतलब है कि पटोला सिल्क साड़ी को भी शीर्ष पांच सिल्क बुनाई में शामिल किया जाता है।