क्या ये बीमारी दवा से कम और मनोबल से ज़्यादा ठीक होती है ?
“तुम्हें कुछ नहीं होगा, तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे, मुझे यकीन है”, यह बात अगर किसी बीमार से कही जाती है, तो उस वक्त वह उम्मीद और उत्साह से भर जाता है। कई बार डॉक्टर अपने कुछ गंभीर मरीजों के बारे में कहते हैं, कि उनका बचना चमत्कार से कम नहीं था। ऐसा इसलिये कि भले ही मरीज की शारीरिक अवस्था अच्छी नहीं होती, लेकिन वह मानसिक रूप से इतना सशक्त और आशावान होता है कि बड़ी से बड़ी बीमारी को पछाड़कर ठीक हो जाता है। अपनों की पुकार उन्हें ज़िन्दगी में लौटने के लिये मजबूर कर देती है। कोरोना से भी जीतने के लिये डॉक्टर लोगों को इम्यून सिस्टम की मजबूती के साथ मानसिक रूप से मजबूत रहने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि हर व्यक्ति एक-दूसरे में उम्मीद पैदा करे, ताकि किसी भी सूरत में प्रभावित व्यक्ति जिन्दगी की डोर थामे रहे। मगर इसके विपरीत कोरोना के खौफ ने लोगों की जिंदगी में कुछ इस तरह असर डाला है कि शारीरिक दूरी के साथ भावनात्मक रूप से भी लोग एक-दूसरे से दूर हो रहे हैं। यदि व्यक्ति को यह पता चल जाए कि उसके जान-पहचान में या फिर कोई पड़ोसी कोरोना संक्रमित हो गया है, तब लोग उसकी उपेक्षा करने लगते हैं।
ऐसी कई घटनाओं में से एक है, जब एक जानने वाले के मकान में किरायेदार को किसी बीमारी के चलते दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पीटल में भर्ती होना पड़ा। कोरोना काल चल रहा है, तो उसका कोरोना टेस्ट भी हुआ। रिपोर्ट नहीं आई थी मगर उस मकान में रहने वाले सभी लोगों को क्वारंटाइन कर दिया गया। उसमें एक महिला, अपने पति और 4 साल के बच्चे के साथ रह रही थी। अचानक उसी दिन बच्चे के पेट में दर्द होने लगा, और बुखार आ गया। रात भर सब परेशान रहे लेकिन वे क्वारंटाइन में थे तो किसी ने मदद नहीं की। यहां तक कि राशन वाले ने उनके घर राशन देने से मना कर दिया। तब परेशान दंपत्ति ने क्षेत्रीय पार्षद से मदद की गुहार लगाई, और उन्हें थोड़ी राहत मिली। बिना किसी गलती के 14 दिन अपराध बोध में जीने के बाद अब वह क्वारंटाइन में नहीं हैं, लेकिन उनकी उपेक्षा उन्हीं लोगों ने की, जो कोरोना से पूर्व अपने लगते थे। हम चाहे अपने स्वार्थ निहित किसी से भी भेद करें मगर कोरोना किसी से भेद नहीं करता, किसी को भी हो सकता है। हां इससे बचाव के लिये शारीरिक दूरी का ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है।
ऐसे ही समाज के लोगों से कानपुर नगर के मुख्य चिकित्साधिकारी(सीएमओ) डॉ. ए.के.शुक्ला ने लोगों से अपील करते हुए कहा है कि जब भी कभी आपके आसपास के किसी व्यक्ति या पड़ोसी को क्वारंटाइन या आइसोलेशन के लिए ले जाया जा रहा हो तो उसकी वीडियोग्राफी करके उसे आपराधिक बोध जैसा अनुभव कराने का प्रयास ना करें बल्कि अपने घर के दरवाजे से, बालकनी से या छत से आवाज लगाकर, हाथ उठाकर, हाथ हिलाकर उनका उत्साह बढ़ाएं और कहें कि आप जल्द ही ठीक होकर हमारे बीच में फिर से पहले जैसी जिंदगी शुरू करेंगे। उनके जल्द ठीक होकर घर वापसी के लिए शुभकामनाएं दें। उनकी इज़्ज़त और प्रार्थना करें। उन्हें अच्छा पड़ोसी व मित्र होने का एहसास कराएं। उन्हें *Get Well Soon* कहें, जिससे वह अंदर से मज़बूत होकर सबके साथ फिर से जुड़े।
ऐसा करने से उन्हें अच्छा लगेगा साथ ही आपको भी शांति प्राप्त होगी क्योंकि इस स्थान पर हम में से कोई भी हो सकता है। बीमारी दवा से कम और मनोबल से ज़्यादा ठीक होती है। एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाएं। ईश्वर से प्रार्थना करें सभी का मंगल हो। सभी स्वस्थ रहें। सबके जीवन में प्रेम और शांति की स्थापना हो।